Thanjavur Tourism Promotion Council
यह नागा को पकड़कर झुके हुए राक्षस पर नृत्य करने जैसा है l दो-स्तरीय पद्मपीडम एक थाली में जुड़ा हुआ है। दो स्तरिये आयताकार भद्रपीडम अलग से स्थतित किया गया है। इसके अलावा भद्रपीडम के सभी किनारों पर चार छल्ले की व्यवस्था की गई है और अतिरिक्त समर्थन के लिए दोनों तरफ पीछे की ओर चौकोर आकार के छल्ले जुड़े हुए हैं। बालों की पाँच लटें पन्द्रह में फैली हुई हैं, और सिर के बालों के सिरे दोनों तरफ जुड़े हुए नहीं हैं। दाहिनी ओर की जटा के बालों में देवी गंगा हैं और बायीं ओर की जटा के बालों में नाग है। जटामाकूट में दाहिनी ओर सर्प, मध्य में कपाल, बाईं ओर उमट्टम का फूल और अर्धचंद्र हैं। शरीर पर मुड़े हुए पंख प्रभावली के मध्य भाग से जुड़े होते हैं। फूल के आकार के पदक वाला हार और दाहिनी ओर लटका हुआ छोटा पदक हैं। दाहिने कान में मकरकुंडल और बाएं कान में भद्रकुंडल है। प्रभावली एक छल्ले वाले गोल के रूप में है। लीवर वाला भाग आग की लपटों से प्रज्वलित होता है। उत्तरिया कंधों पर उड़ते हुए दो हाथों के बीच बाईं ओर है। हमेशा की तरह नागा नीचे दाहिनी ओर स्थित है। नागा का सिर टूट गया है l चारों हाथों पर कलाइयां और बाजूबंद-नियमित करधनी-अलंकृत अर्धेरका-कूल्हों पर यली मुखक्षिलम्बा-तीन मुड़े हुए फूलों के धागे-दाहिने पैर पर ब्रुंगीपाथा-छोटे मोतियों के साथ सिलम्बा-पैर के अंगूठे को छोड़कर दूसरी और मध्यमा उंगलियां हैं।
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